सच कहता हूं
घर से
‘कुछ नहीं’ पीकर आने की कसम
खाकर जाने वाले
प्रेमपूर्वक
‘कुछ नहीं’ पीकर
घर आते हैं
और
घर जाकर
पत्नी की कसम खाकर
कहते हैं
”सच कहता हूं”
आज फिर ‘कुछ नहीं’ पी.”
इस प्रकार
‘कुछ नहीं’ के चक्कर में
बहुत कुछ पी जाते हैं
और
अपने
तन-मन-धन
स्वास्थ्य और संस्कृति के साथ
खिलवाड़ करते हैं
जमकर सच कहने की
कसम खाकर झूठ के साथ
जमकर दोस्ती निभाते हैं.
पुनश्च-
(‘कुछ नहीं’ स्कॉच व्हिस्की का नाम है)
कुछ नहीं पीते पीते बहुत कुछ पी लेते हैं कुछ लोग . लघु कथा अछि लगी .
प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको कविता बहुत अच्छी लगी. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. कुछ लोग कुछ नहीं पीते पीते बहुत कुछ पी लेते हैं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
सच कहता हूं बोलकर झूठ के साथ दोस्ती निभाने वाले पति मद्यपान से होनेवाली हानियों से वाकिफ होते हुए भी अपनी शराब की लत को छोड़ नहीं पाते हैं, इस प्रकार अपना, अपने परिवार, समाज और देश का भी सर्वनाश कर देते हैं. इसी को इंगित करती हुई प्रस्तुत है यह व्यंग्यमय कविता.