बाल कविता – चन्दा मामा
चंदा मामा रूप तुम्हारा
मुझे लुभाया करता है |
घटना- बढना निश दिन तेरा
मुझ में अचरज भरता है |
टिम टिम करते तारों में
तुम बड़े सुहाने लगते हो |
गोल गोल जब हो जाते हो
थाल सरीखे दिखते हो |
तब दिखती एक बुढ़िया तुममें
बैठी छाया पेड़ तले |
कौतूहल मन में भारी
क्यूँ धरा छोड़ है पास तेरे |
बैठी चरखा काता करती
माँ कहती एक दादी है |
दूर अकेला पन करने को
संग तेरे वो रहती है |
सपनों में ले पंख परी से
पास तुम्हारे आयी हूँ |
देख देख बस मुस्काते हो
तुम कितने हरजाई हो |
कितने कस्ट उठाए मैने
कितने पापड़ बेले है |
खड़े बादलों की सीढी पर
तेरी बोली को सुनने |
चंदा मामा कुछ तो बोलो
कुछ तो हमसे बात करो |
कितना प्यार तुम्हे करते हैं
कुछ तो इसका मान धरो |
प्यारी प्यारी गुडिया रानी
मैं भी तुमसे प्यार करूँ |
तुझे रिझाने के खातिर ही
रोज नये नित रूप धरूँ |
मेरी चंदनियाँ ज्यों फैले
त्यों त्यों तेरा रूप खिले |
मेरी शीतलता तुम पाओ
जग को शीतल छाँव मिले |
©®मंजूषा श्रीवास्तव
लखनऊ (यू. पी)