मेरा खिलौना
मुझको कहते बाल सलोना,
मैं अपनी ममी का खिलौना,
मुझको भातीं चीजें कितनी,
सबसे प्यारा मेरा खिलौना.
सबसे पहले मुझको भाया,
झन-झन झुंझने वाला खिलौना,
फिर फिरकी-लट्टू-गुब्बारे,
बैट-बॉल था मेरा खिलौना.
टमटम गाड़ी-कार-प्रैम का,
भेंट में पाया मैंने खिलौना,
अच्छा लगता कोई सराहे,
ले नहीं पाए मेरा खिलौना.
लुडो-शतरंज-सांप सीढ़ी का,
भाता था फिर मुझे खिलौना,
कैरम-टेनिस-बैडमिंटन को,
सब कहते हैं अच्छा खिलौना.
रेडियो-वीडियो-टेपरिकॉर्डर,
कम्प्यूटर-सा भाए खिलौना,
हाथी-घोड़ा-ऊंट सवारी,
मेले में बन जाए खिलौना.
गुल्ली डंडा-डंके-कंचे,
बन जाते हैं मेरा खिलौना,
कलर बॉक्स से चित्र बनाता
और बनाता कोई खिलौना.
दो या तीन पहियों की साइकिल,
समय बचाने वाला खिलौना,
संयम-नियम से नहीं चले तो,
जीवन ही हो जाता खिलौना.
क्या बतलाऊं क्या-क्या मुझको,
समझाता है मेरा खिलौना,
हंसना-खेलना-गिर के संभलना,
सिखलाता है मेरा खिलौना.
कभी रूठ भी जाऊं मैं तो,
मुझे मनाए मेरा खिलौना,
वह मेरा मैं उसका प्यारा,
मेरा खिलौना, मेरा खिलौना.
बच्चों की निराली दुनिया में उनके खिलौने ही उनके लिए सब कुछ हैं. उनके खिलौने समय-समय पर बदलते रहते हैं, लेकिन उनके खिलौनों को कोई और हाथ लगा ले, यह उनको गवारा नहीं होता. वे अपनी मर्जी से चाहे जिसे दे दें और फिर मन-मुटाव होने पर वापिस भी ले लेते हैं. दोस्ती होने पर फिर से उसे दे भी देते हैं. ऐसी होती है बच्चों के खिलौनों की निराली दुनिया.