व्यंग्य की संतई
वैसे तो कबीर लिटरेचर मेरा प्रिय विषय रहा है..! लेकिन इधर कबीर राजनीति के क्षेत्र में उतर आए हैं, और व्यंग्यकारों ने इसे ताड़ लिया है ! तभी तो, बेचारे कबीर भी व्यंग्यियाए जा रहे हैं..बाप रे..! जो स्वयं व्यंग्यरूपेण संस्थित हो उसी पर व्यंग्य..!! हाँ..यह सोचने की बात है..! ऐसे ही होता है व्यंग्य का हश्र…! बचपन में सुना था..फागुन माह में “कबीर सsरsरअ..” फिर इसी “कबीर..सsरsरs..अ..” के साथ आने वाले चैत माह की धमकी होती..कि..जितना हँसी-मजाक करना है कर लो अभी समय है आगे फिर कटनी शुरू हो जाएगी..चैत लग जाएगा, यह मौका फिर नहीं मिलेगा..! कहना यही कि हँसी-मजाक खलिहर समय की बात होती है..! चइत माह में फिर यह खाली समय नहीं मिलेगा…।
हो सकता है, तननां बुनना तजकर कबीर भी खलिहर आदमी बन गये हों, शायद तभी बड़ी शिद्दत से सबकी लानत-मलामत करते थे..! न जाने कितनी बातों पर कितनी बात कही…कबीर की कबीर जाने। लेकिन, इधर खलिहर आदमी की बात को कोई बहुत गंभीरता से नहीं लेता, उसकी बातों पर रस ले लेकर चर्चा तो होती है, लेकिन फिर सब अपनी-अपनी राह हो लेते हैं। हाँ, बड़ा बेढब देश है अपना..! हर गंभीर बात को हँसी में उड़ा कर तरोताजा दिखनेवाला, जैसे कुछ हुआ ही न हो…एकदम से “कबीर सsरsरs..” वाले हँसी-मजाक के अंदाज में..!! कबीर बेचारे भी खूब कहे…जी जान से कहे..लेकिन इस देश का यही नेचर है..कि जब कोई ज्यादा संजीदगी से पेश आए तो तनिक उसकी भी चुटकी ले लो..! तो सुनने वाले का सारा स्ट्रेस गायब..हाँ व्यंग्य न हुआ जैसे झंडू बाम हो गया “मलिये और काम पर चलिए” टाइप का..!! इसीलिए इस देश में “कठुआ है तो मंदसौर है..या फिर..मंदसौर है तो कठुआ भी है” में सारी बात घूम कर रह जाती है…और बीच में बचा-खुचा मगहर आ जाता है; व्यंग्यियाने का एक नया विषय..नया क्षेत्र..!
हाँ कबीरदास जी केवल “विवेक बुझाते” रह गए और यहाँ, आज हर बात में “व्यंग्य बुझाया” जाता है..कठुआ और मंदसौर कहने के स्टेशन है; लेकिन यहाँ गाड़ी रुकती नहीं..!! ये व्यंग्यकार हाथ में “लुआठा” लिए मगहर पर खड़े हैं…यह व्यंग्यकारों का स्टेशन है, यहाँ व्यंग्य को राजनीतिक चाशनी मिलती है। बिना राजनीति की चाशनी के व्यंग्य सुस्वादु भी तो नहीं होता..! यह व्यंग्य का स्टंट है, लेकिन जनता भी अब “कबीर गाती” है, वह बातों को खलिहरों का स्टंट समझकर खूब मजे लेती है..और..इसीलिए आज व्यंग्य बेअसर है यह एक स्टंट बन चुका है…बेचारे कबीर नाहक इनके बीच में फंस रहे हैं..! हाँ..बातों के स्टंट में हम उलझ गये हैं…आज व्यंग्यकारों पर “व्यंग्य की संतई” तारी है..।