“गीतिका”
मापनी-2122 2122, 2122 212, समांत- ओल, पदांत- दूँ,
हो इजाज़त आप की तो, दिल कि बातें बोल दूँ
बंद हैं कमरे अभी भी, खिड़कियों को खोल दूँ
उस हवा से जा कहूँ फिर, रुख इधर करना कभी
दूर करना घुटन मंशा, जगह दिल अनमोल दूँ॥
खिल गई है रातरानी, महक लेकर बाग की
हर दिशा गुलजार करती, रंग महफिल घोल दूँ॥
जा कहूँ उस भ्रमर से उड़, मत कली को छेड़ना
दूर रहना अधखिले इस, फूल का क्या? मोल दूँ॥
सज रहे अपनी कियारी, चैन से जो झूमते
उन बहारों की डगर पर, जा भला क्या? लोल दूँ॥
सूखकर काँटे हुए जो, फिर भी लटके शाख़ पर
झुक गए अपनी डली पर, जा उन्हें फिर झोल दूँ॥
पर बिना गौतम उड़ा कब, है परिंदा जा रहा
बटखरा चिलमन हटाओ, खुद तराजू तोल दूँ॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी