कविता

फैशनेबुल शहर

नशे में झूमता हुआ
नींद में उंघता हुआ
बदहवास सा
बेकाबू हुआ शहर
जाने कहां को दौड़ता शहर

अधनंगी सी फैशन
गजब का है ये पैशन
क्या युवा, क्या अधेड़
जाम छलकाते, कश लगाते
बहू बेटियों संग कूल्हे मटकाते
जाने कहां को भागता शहर

रईसजादों से अटा पड़ा शहर है
क्लबों, डांस बारों से भरा शहर है
बेडरूम सूने पड़े हैं
होटलों के कमरे रंगीन हुए हैं

शामें गुलजार हैं
रातें रंगीन पड़े हैं
फार्म हाउसों में हो रही है पार्टियां
आलीशान महलों, कोठियों का शहर है

दुधिया रौशनी में नहाया
रात भी अब तो है शरमाया
मानो सूरज भी डूबता नहीं यहां
फिर भोर की किसको पड़ी है

लग्जरी गाड़ियां, रिक्शे,
स्कूटर से भरा शहर है
फिर क्यूं लोकल ट्रेनों, बसों में अटे पड़े हैं
सबको है जल्दी,
हर कोई हड़बड़ी में खड़ा है।

हादसों, अफवाहों का शहर है
बच्चियों से हो रहा खिलवाड़
महिलाओं का लुटता इज्जत
नारियों के लिए अनसेफ शहर है

तरक्की और विकास का शहर
गगनचुंबी इमारतों, आधुनिकता का शहर
लाइफस्टाइल और फैशन
तकनीकों का शहर है
फिर क्यों गरीब ज्यों का त्यों पड़ा है।

फुटपाथ पर
कुछ बेचारे अधनंगे से
फकीर पड़े हैं।

भूख से पिचके पेट
सूखी हड्डियों का ढांचा बचा है
झुग्गियों, तंग गलियों में
रहने वाले बदहाल बड़े हैं
राशन, पानी, बिजली आदि
लाइनों में खड़े हैं

ये कोई और नहीं
इस शहर के रहमोकरम पर
पलने वाले गरीब, मजदूर असहाय से हैं
आखिर इस शहर को अपने हाथों से
बनाने, संवारने वाले सब कतार में खड़े हैं।
बबली सिन्हा

*बबली सिन्हा

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