कविता

तेरा चेहरा……

एक अनजाना सा चेहरा
कुछ धुंधला, कुछ अस्पष्ट सा
लिपटा रहता है साये की तरह
हर वक्त हर पल है साथ
मैं तन्हां नहीं, साथ है तू
एक अनजान की परछाई है तू
करती है पीछा अतीत का
वर्तमान में साया
भविष्य का चेहरा है तू
अकेला नहीं मैं, संग है तेरा
तेरे चेहरे में आकर्षण है
खिंचाव है तुम्हारे व्यक्तित्व में
डूबता जाता हूँ…
जब तेरे चेहरे के
रूबरू रहता हूँ,
खो जाता हूँ कहीं दूर, सुदूर
सुरम्य वादियों में
मधुर संगीत से मंत्रमुग्ध
बहती जलधाराओं से
निकलने वाली ध्वनि की मानिंद
चट्टानों से गिरते झरने से उठते धुएं
पक्षियों का कोलाहल
वातावरण में मिश्रित मनमोहक सुगंध
आहा! कितना भव्य, कितना सुंदर है
कितना मधुर अहसास है।
कितना लावण्य है तुममें
पास हो तुम या
कि जिंदगी पास है मेरे
जी चाहता है बस
देखता रहूं, निहारता रहूं,
डूबता, उतराता सा
जिंदगी की उतार-चढ़ाव
एक साँस में पार कर जाऊं
पास रहो तुम, संग रहो तुम
तुम और तुम्हारा चेहरा ही
मेरा जीवन है, मेरी दुनिया है।
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*बबली सिन्हा

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