गज़ल
चाँद माथे पे, निगाहों में सितारे लेकर,
रात आई है देखो कैसे नज़ारे लेकर
सुबह तक याद ना करने की कसम टूट गई,
नींद आई तेरी यादों के सहारे लेकर
नहीं आसां है सजा लेना हंसी चेहरे पर,
भीगती आँखों में सुलगते शरारे लेकर
हाथ आया ना कुछ ता-उम्र मशक्कत करके,
आखिर चल दिए बस दिल में खसारे लेकर
आज निकला हूँ अपना ज़र्फ आज़माने को,
तुम भी आ जाओ सब तीर तुम्हारे लेकर
— भरत मल्होत्रा