कविता

मत कहो कि ”कुछ नहीं हो सकता”

क्यों कहते कुछ नहीं हो सकता?
चाहो तो सब कुछ हो सकता,
कोशिश तो करो मन से प्यारो,
मत कहो कि ”कुछ नहीं हो सकता”.

तुम रक्तदान कर सकते हो,
तुम चक्षुदान कर सकते हो,
चिपको आंदोलन फिर से छेड़,
पेड़ों को बचा तुम सकते हो.

नारी अस्मिता का बीड़ा ले,
नारी-रक्षा कर सकते हो,
परिवार में सद्भावना बढ़ा, 
उसको मधुरिम कर सकते हो.

क्यों कहते कुछ नहीं हो सकता?
चाहो तो सब कुछ हो सकता,
कोशिश तो करो मन से प्यारो,
ये कहो कि ”सब कुछ हो सकता”.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “मत कहो कि ”कुछ नहीं हो सकता”

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन , कविता बहुत अछि लगी ,,कोशिश तो करो मन से प्यारो,
    ये कहो कि ”सब कुछ हो सकता”.सही बात है ,कोशिश करने से सभ कुछ हो सकता है .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको कविता बहुत अच्छी लगी. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    मनुष्य में असंख्य संभावनाएं हैं. एक बार वह हौसले की पतवार संभाल ले, तो उसकी नैय्या अवश्य पार हो सकती है.

    आफत आए, तो धीरता से शेर बन जाएं,
    न हिचकें न घबराएं,
    परिस्थितियां हों ‘गर भारी,
    तो भीगी बिल्ली बन जाएं,
    सूझबूझ और चालाकी से फ़तह पाएं.

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