दोहे रमेश के
इत देखूंँ परिवार या, उत देखूँ मै देश !
जीवन के बाजार मे,ऐसा फँसा रमेश ! !
पिछड़ेपन की देश मे,ऐसी चली बयार !
लगी हुई है होड़ सी , बनने की लाचार !!
कर लेगें सब ठीक है, गठबंधन स्वीकार !
किसे कहें पर आपका, बतलाएँ सरदार !!
बुरे भले के बीच का, जिन्हे नही है भान !
उनकी भी मंशा यही, मै भी बनूँ प्रधान ! !
ऐसी कैसी लालसा ,नेताओं की आज !
चाहे जैसे भी मिले, रहे उन्ही का राज !!
इच्छाएँ मरती नही,…मर जाता इंसान !
यही समूचा सत्य है,इसे समझ नादान !!
जिसके रहते खो गया.,जीवन का अनुराग !
ऐसी ख्वाहिश का करें,फौरन ही परित्याग !!
विद्या से बढकर नही, उत्तम और निवेश !
चाहे जितनी कीजिए, दौलत जमा रमेश ! !
बचकाना हरकत करें,नाजायज व्यवहार !
लोगों मे उनका रहे,. सदा निम्न किरदार! !
पता नही किस वक्त क्या,दे दें दुष्ट बयान!
काबू मे जिनकी कभी,रहती नही जबान !!
करते हो निंदा अगर,रहे हमेशा ध्यान !
होते हैं तुम मान लो,.दीवारों के कान !!
क्या होंगे उस द्वार के, सोचो तो हालात !
लौटी हो आकर जहाँ, सजी धजी बारात !!
बढती गई किसान की, दिन पर दिन जब पीर!
मेघों ने अपना स्वंय, ……..दिया कलेजा चीर! !
— रमेश शर्मा. मुंबई ९८२०५२५९४०