गले मिलकर ग़िले शिकवे मिटाने की तमन्ना है
गले मिलकर ग़िले शिकवे मिटाने की तमन्ना है
ग़मो के दौर में फ़िर मुस्कुराने की तमन्ना है
तमन्ना है रखूँ बस याद लोंगो की भलाई को
बुराई को सभी की भूल जाने की तमन्ना है
गये जो रूठकर मुझसे मेरे अपने उन्हें फिर से
किसी भी हाल में अपना बनाने की तमन्ना है
धधकती नफ़रतों की आग के इस दौर में मेरी
झुलसती आदमीयत को बचाने की तमन्ना है
बड़ा मजहब कभी इंसानियत से हो नही सकता
जहां को बात इतनी सी बताने की तमन्ना है
अगर अजदाद की थोड़ी चरण रज मिल सके मुझको
समझ चंदन उसे माथे सजाने की तमन्ना है
नही थी धर्म मजहब जाति की दीवार ही जिसमें
उसी बचपन में फिर से लौट जाने की तमन्ना है
सतीश बंसल
३१.०७.२०१८