उसका दूभर दुनिया में जीना हुआ
पत्थरों के बीच जो शीशा हुआ
साथ कोई दे न दे मेरा यहाँ
साथ अपने ख़ुद को है रक्खा हुआ
ज़िंदगी में मुश्किलों से जूझ कर
अपने होने का सबब पैदा हुआ
अक्स अपना देख कर हैरान हूँ
लगता है शायद कहीं देखा हुआ
दिख रहा जो ताब माथे पर मेरे
वक़्त के हाथों से है छीना हुआ
चैन से जब सो रहा था सत्य था
जागते ही आदमी मिथ्या हुआ
देखना चाहा जो मन की आँख से
ज़र्रे ज़र्रे में दिखा फैला हुआ
इसकी कोई भी नहीं मंज़िल अजय
रास्ता ये है मेरा देखा हुआ
— अजय अज्ञात