काल
मैं कैसे हंसू और मुस्कराऊ,
मुझे काल का, भय दिख रहा है
कई काल के गर्त में जा चुके हैं,
कईयों के जाने का समय दिख रहा है,
मुझे काल का, भय दिख रहा है
दूर जो देखती हूँ,जीवन और मृत्यु की तरह,
जमीं आसमाँ का विलय दिख रहा है,
मुझे काल का, भय दिख रहा है
उम्र के बढ़ने के साथ साथ,
नयी नयी बीमारियों का उदय दिख रहा है,
मुझे काल का, भय दिख रहा है
मैं चाहती हूँ इस भय सागर से उबरना,
मुझे संभाल ले ओ प्रभु,
एक तू ही शक्तिवान और निर्भय दिख रहा है
— सुनीता कत्याल