क्षणिका

पुरवैया

जब दरख्तों से अठखेलियां
करती है पुरवैया
काले घनघोर बादलों के सीने में
चमकती है बिजुरिया
पिया तुम याद आते हो
बहुत जी को तड़पाते हो

सुनीता कत्याल

सुनीता कत्याल

पति का नाम -जीतेन्द्र कुमार कत्याल जन्म तिथि- 9 -8 -1959 मैं लखनऊ निवासी हूँ | साइंस और एजुकेशन में ग्रेजुएशन किया है.| बचपन से ही कविता लिखने, पढ़ने और कहानी पढ़ने का शौक था.| पर अब 33 - 34 वर्षो बाद फिर से कविता लेखन को अपनाया | मेरी कवितायें जीवन के उतार और चढाव तथा सामयिक परिस्थितियों से प्रभावित मेरी संवेदनाएं है| मेरा अनुभव ये कहता है कि उम्र के साथ साथ व्यक्ति की अभिव्यक्ति और भी निखर जाती है | मेरी एक कविता "स्याही" अमर उजाला काव्य में प्रकाशित हुई है.