अध्यात्म में है जीवन का सुख
यह जगत पांच भौतिक तत्वों द्वारा बना है। इन तत्वों में आकाश सबसे सूक्ष्म है। इसी कारण आकाश अपने अस्तित्व को सिर्फ ध्वनि द्वारा ही सिद्ध करता है। इस आकाश तत्व को समझने के लिए या इसकी ध्वनि तरंगों को समझने के लिए एक विशेष किस्म का वैज्ञानिक यंत्र आवश्यक है।
इस आकाश तत्व को छोड़कर बाकी चार तत्वों को हम अपनी इंद्रियों की सहायता से आसानी से समझ सकते हैं। ईश्वर इन पांच तत्वों से भी सूक्ष्म हैं। वह मानसिक अथवा अतिमानसिक दायरे के भी परे हैं। मानसिक या अतिमानसिक क्षेत्र के विषय के लिए ये पंचतत्व इनके आभास हैं। इसलिए अपने मन की सहायता से हम ईश्वर या भूमा चेतना तक पहुंचने में असमर्थ हैं ।
हमारे मन को बार-बार निराश होकर लौटना पड़ेगा, यदि वह वहां पहुंचना चाहेगा क्योंकि वे हमारी कल्पना शक्ति के पहुंच के भी परे हैं। हम किसी भी साधारण ज्ञान के द्वारा उन्हें नहीं पा सकते। यम कहते हैं – मनुष्य ईश्वर को अपने मन के द्वारा या शब्द के द्वारा नहीं पा सकते। ईश्वरीय आनंद में प्रतिष्ठित होने पर मन, बुद्धि, शब्द सभी लुप्त हो जाते हैं क्योंकि वे स्वयं आनंद हैं। स्वयं के चेतना की आनंद की शक्ति के द्वारा उनमें प्रतिष्ठित होना पड़ता है। वहां पहुंचने पर मन अस्तित्वहीन हो जाता है; और इसलिए ये छ: बंधन- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मात्सर्य से भी मुक्त हो जाते हैं। तब साधक भय से मुक्त हो जाता है।
ईश्वर हमारा लक्ष्य है अर्थात् वे आंखों के द्वारा नहीं देखे जा सकते। अपनी इंद्रियों के द्वारा इस सूक्ष्मतर सत्ता को नहीं समझा जा सकता। अणुकण और अणुओं के अति सूक्ष्म होने के कारण इनको देखने के लिए वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता लेनी पड़ती है। इस प्रकार ईश्वर भी सहज दृश्य नहीं है। जिस तरह अणुकणों और अणुओं को देखने के लिए बौद्धिक और वैज्ञानिक दृष्टि की आवश्यकता होती है, उसी तरह ईश्वर को देखने के लिए आध्यात्मिक दृष्टि की आवश्यकता है। अत: उन्हें पाने के लिए उन्हें ‘उपवास’ करना पड़ेगा जिसका अर्थ है पूजन करना।
जब कोई आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर लेता है उसके सभी दुख और चिंताएं दूर हो जाती हैं। मन ही सुख और दुख का कारण है, किंतु ईश्वर अतिमानस स्तर के भी परे हैं। उसे पाने के लिए जो आध्यात्मिकता का परमलक्ष्य है, साधना के पथ पर चलना होगा।