लघुकथा

संघर्ष अभी बाकी है

रामपुर गाँव में आज उत्सव का माहौल था । सभी ग्रामवासियों के चेहरे खिले हुए थे और दिलों में नई उमंग और उम्मीद ने दस्तक दे दी थी । होती भी क्यों नहीं ? रामू लोहार का पोता कलेक्टर बनने के बाद आज पहली बार अपने गाँव आ रहा था । आरामदेह सरकारी गाडी की पिछली सीट पर बैठा कलेक्टर राकेश को बार बार याद आ रहा था अपने पिता अमर का वह कहना जब वह अक्सर उसको समझाते हुए कहते थे ‘  बेटा ! तुम्हें नहीं पता जीवन में संघर्ष कैसे किया जाता है ? हमने देखा है अपने पिता को भट्टी के किनारे पसीने से तरबतर लोहे का वह बड़ा सा हथौड़ा चलाते हुए । हम भी चला लेंगे बेटा ! लेकिन तुम्हें इस आग में जलते हुए नहीं देख पाएंगे । भले हमें दुगुनी मेहनत ही क्यों न करनी पड़े तुम्हें ऊँची से ऊँची शिक्षा दिलाएंगे । ऊँची शिक्षा ही अब हमें अभावों की इस आग से निजात दिला सकती है । और ऊँची शिक्षा प्राप्त करने के लिए जितना मुझे जरुरत है मेहनत करने की मुझसे कहीं ज्यादा जरुरत है तुम्हें मेहनत करने की ! बस थोड़ी मेहनत और ….और फिर सुनहरा भविष्य …! ‘
पिता के उदगार याद आते ही वह दुगुने जोश से अभ्यास करने में लग जाता और फिर उसकी मेहनत रंग लाई जब वह प्रशासनिक सेवा के लिए चुन लिया गया । गाँव के लोगों से मिलकर उसे अहसास हो गया कि उसका संघर्ष अभी समाप्त नहीं हुआ है । अभी तो उसका संघर्ष शुरू हुआ है । जब तक हर नागरिक के मुख पर सुख और संतोष नहीं नजर आता उसका संघर्ष जारी रहेगा । चाहे यह संघर्ष जीवन भर का ही क्यों न हो …!

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।