कविता – तुम अकेले हो
तुम अकेले हो जहां मे,
मानकर चलना ।
अपनों की दावेदारी का,
वो दौर कोई और था.।।
भागती दुनिया नही थी,
ना वक्त की परवाह थी।।
जिन्दगी में सूकून था,
बस हमारा दौर था।।
दौर बदला,रफ्तार बदली,
नर भी बदला नार बदली।
सामने ही सब टूट बिखरा,
जो आम मे सब बौर था।।
रो रहे सब छुप छुपा कर,
बात हो रही बस घूमाकर।
बिखर रहे सब टूटकर ही,
खत्म हो रहा,जो शौर्य था।।
— हृदय जौनपुरी