कविता

कविता – कुछ ढूढ़ रहा है मेरा मन !

कुछ ढूढ़ रहा है मेरा मन !

क्यों परेशान लगता है जन !!

स्वार्थ की गाड़ी पर सब चढ़ ,

भटक रहे पनघट -पनघट ,

दूर दिखाई देता पानी पर ,

लेता देता हर पल ही छल.,

हाथ नहीं लगता जब सुख ,

हो जाता है -फिर बिह्वल मन ,

कुछ ढूढ़ रहा है मेरा मन !

क्यों परेशान लगता है जन !!

अंधे को उजियारा चाहे ,

बिह्वल मन अंधियारा भाये ,

भूखे को रोटी है प्यारी ,

लालची कहता सम्पति सारी,

कोढ़ी को काया है भाये ,

मोटा सोचे दुबला हो जाए ,

निर्धन मांगे बस धन ही धन ,

कुछ ढूढ़ रहा है मेरा मन !

क्यों परेशान लगता है जन !!

आसमान में कितने तारे ,

गिनते -गिनते सब है हारे ,

मन चंचल कंही थम न पाए ,

एक पकडे एक छुटा जाए ,

दूजे की थाली में घी है ,

ये सोचे बस मन ललचाये ,

भटक रही है युगों -युगों से ,

माया मन को ले ले कर ,

कुछ ढूढ़ रहा है मेरा मन !

क्यों परेशान लगता है जन !!

हृदय जौनपुरी 

हृदय नारायण सिंह

मैं जौनपुर जिले से गाँव सरसौड़ा का रहवासी हूँ,मेरी शिक्षा बी ,ए, तिलकधारी का का लेख जौनपुर से हुई है,विगत् 32 बरसों से मैं मध्यप्रदेश के धार जिले में एक कंपनी में कार्यरत हूँ,वर्तमान में मैं कंपनी में डायरेक्टर के तौर पर कार्यरत हूँ,हमारी कंपनी मध्य प्रदेश की नं-1 कम्पनी है,जो कि मोयरा सीरिया के नाम से प्रसिद्ध है। कविता लेखन मेरा बस शौक है,जो कि मुझे बचपन से ही है, जब मैं क्लास 3-4 मे था तभी से