आग लगाता ये सावन
गीली धरती ,तपता मन।
आग लगाता ,ये सावन।।
सुगंध खोकर, खिले गुलाब।
खुद से जलता,एक आफताब।।
चाँद के संग बाटता, अपने दिल
का सूनापन।
आग लगाता, ये सावन।।
हरियाली मन की, दिल है बंजर।
जीवन पथ पर, चलता खंजर ।।
दर्द बोता सीने में ,दूर हो कैसे
ये उलझन।
आग लगाता, ये सावन।।
— नीरज सचान