कविता

महाकवि गोपाल दास जी नीरज की स्मृति में

फिसलता है पल -पल मुट्ठी में रेत सा ।

गिर्दाब है! वक्त कभी ठहरता नही।।

छुपता है हर रोज शाम के आंचल में।

कायम है! आफताब कभी ढलता नही।।

मुरझा के फिर बीज बना करता है ।

अज़ल है! ‘नीरज’ कभी मरता नही।।

नीरज सचान

नीरज सचान

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