महाकवि गोपाल दास जी नीरज की स्मृति में
फिसलता है पल -पल मुट्ठी में रेत सा ।
गिर्दाब है! वक्त कभी ठहरता नही।।
छुपता है हर रोज शाम के आंचल में।
कायम है! आफताब कभी ढलता नही।।
मुरझा के फिर बीज बना करता है ।
अज़ल है! ‘नीरज’ कभी मरता नही।।
— नीरज सचान