शहीद की मां
स्वप्न में भी तू न रोना तू शहीद की है मां
हौसला सबका बढ़ाना तू शहीद की है मां
न सजा सेहरा तो क्या है तन तिरंगे में तो है
गूंजी न शहनाई पर जन गण की धुन मन में तो है
गर्व से तू गुनगुनाना तू शहीद की है मां
हौसला ,,,,,,,
जान जाए गम नहीं है सह नहीं सकते गुलामी
आतिशबाजी न सही पर मिले तोपों की सलामी
मुस्कुरा के सिर उठाना तू शहीद की है मां
हौसला ,,,,,,,,,,
एक भी आंसू न गिरने पाए तेरा फर्श पे
देख दिल दुखेगा मेंरा जाते हुए अर्श पे
ग़म को सीने में छुपाना तू शहीद की है मां
हौसला ,,,,,,,,,,,,.
— पुष्पा “स्वाती”