गीत/नवगीत

आजादी

वीरों ने अपना लहू बहाया तब जाके ये सुबह आई
आबो हवा स्वतंत्रता की, तब हमने है पाई।
आजादी की कीमत, कोई क्या जानेगा,
जिसने प्राण गंवाए, वो ही पहचानेगा,
हंसते हंसते कितनों ने, अपनी जान लुटाईं।
आबो हवा स्वतंत्रता की, तब हमने है पाई।
आजादी के नीचे जाने, कितने शव पड़े है,
आज हम उन्हीं पे, कितने चैन से खड़े हैं,
सोचते ही सोचते ये, आंख भर आई।
आबो हवा स्वतंत्रता की, तब हमने है पाई।
याद नहीं है किसी को, उनकी वो कुर्बानी,
तड़प तड़प कर मरे थे, बिना खाना पानी,
चढ़ गए सूली पे ऐसे, मानो फूलों सेज सजाई।
आबो हवा स्वतंत्रता की, तब हमने है पाई।
आजादी का मतलब, नहीं होता है मनमानी,
आती है जिम्मेदारी, जो पड़ती है निभानी,
कांटों भरा पथ है, जिसपे चलना पड़े है भाई।
आबो हवा स्वतंत्रता की, तब हमने है पाई।
पुष्पा ” स्वाती “

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 pushpa.awasthi211@gmail.com प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है