वो हमारा पहला टेलीविज़न
वर्ष 1985 जब मैंने अपनी चौथी क्लास से पांचवी क्लास में प्रवेश किया।तकरीबन अप्रैल में हमारे परिवार के लिए एक बड़ी खुशखबरी की बात रही,जब हमारे घर में पहला ब्लैक एंड वाइट टेलीविजन आया। वेस्टन कंपनी का ब्लैक एंड वाइट टेलीविजन जो कि शटर खोलने और बंद करने से खुलता और बंद हुआ करता था, ऐसा लगने लगा था जैसे ये बहुत ही बड़ी उपलब्धि है हमारे जीवन की,संयोगवश मुझे आज तक वो हिंदी फीचर फिल्म भी याद है जो उस समय टेलीविजन पर आ रही थी।उस दिन राजेश खन्ना द्वारा अभिनीत फिल्म दुश्मन का प्रसारण टेलीविजन पर हो रहा था।दिन क्या था यह तो मुझे याद नहीं,अब तैयारी थी घर में आये नए टेलीविजन को स्थापित करने की। पहले जो tv हुआ करते थे,उन्हें चलाने के टेलीविज़न को एक तार से जोड़कर एंटीने से जोड़ा जाता था। चलो जैसे तैसे एंटीने को घर की छत के ऊपर स्थापित किया गया और उसके बाद काफी देर तक यह प्रयास किया गया कि किसी तरह से tv पर पिक्चर साफ आये।काफी देर की मेहनत मस्सकत के बाद अपने टेलीविजन पर पहली हिंदी फीचर फिल्म देखी।उस समय कुछ ही घरों में टेलीविजन हुआ करता था। शाम के समय जब सभी लोग और आसपास के बच्चे जो कि मेरे मित्र थे एक साथ बैठकर टेलीविजन का आनंद लेते थे।वो पहला वेस्टन कंपनी का TV हमारे लिए अदभुत सुंदरता लिए स्वप्न सुंदरी के समान हमारे सामने था और हम तीनो भाई बहनों में उसे चलाने के लिए होड़ सी लगी रहती थी।जिस समय बहुत ही कम फिल्में और बहुत ही कम ऐसे प्रोग्राम आते थे जिनमें गाने आते थे।उस समय भी इस बात की बहसबाजी रहती थी कि टेलीविजन पर क्या देखा जाए।अपनी अपनी पसंद के प्रोग्राम देखने के लिय भाई बहनों में लड़ाई की नोबत आ जाती थी।ये उस समय की बात है जब एक परिवार के पास बड़ी मुश्किल से एक ही टेलीविजन होता था।अब तो वक्त बहुत बदल गया है।ना तो वो पहले जैसा बच्चे रहे ना परिवार।बदला आज भी कुछ ऐसा खास नहीं है बस अब हर बच्चे के लिए हर कमरे में अलग-अलग LED उपलब्ध है और जो प्यार या तकरार भाई बहनों में साथ टेलीविजन देखने मे आता था वो खत्म हो गया है। उस समय के बच्चों और आज के बच्चो में सिर्फ इतना फर्क है कि अब बच्चे अपनी मर्जी से अपने कमरों टेलीविजन का आनंद उठाते है।अपने मन से वो कुछ भी देख सकते है,और हम लोगों को उस समय इतनी आजादी नहीं थी कि हम अपनी मर्जी से कोई प्रोग्राम देख सकें पता नहीं किस समय को सही कहा जाए उस समय को या आज के समय को जब छोटे छोटे बच्चे अपनी उम्र से बड़े प्रोग्राम को देख देख कर समय से पहले बड़े हो गए है।खैर इन सब विचारों के बीच अंत मे ये कहूँगा कि वर्ष 1985 हमारे परिवार के लिए एक अच्छा वर्ष रहा।इससे आगे के अपने जीवन के तजुर्बों के साथ दुबारा आपके रूबरू होऊंगा।धन्यवाद
— नीरज त्यागी