गज़ल
दिल कहूँ दिलबर कहूँ दिलदार दिलरूबा कहूँ,
कभी तुम्हें सनम कहूँ कभी तुम्हें खुदा कहूँ
हमसफर तू हमकदम तू हमदम तू हमराज़ तू,
तुमको ही मंज़िल कहूँ तुमको ही रास्ता कहूँ
मौजूद ना होके भी तू हर वक्त मेरे पास है,
महबूब मेरे किस तरह मैं तुझको बेवफा कहूँ
सूरज कहूँ या चाँद तुम्हें गुल कहूँ बुलबुल कहूँ,
या देखूँ जिसमें खुद को मैं तुम्हें वो आईना कहूँ
जानता भी हूँ ये ख्वाब हैं हकीकतें नहीं,
फिर भी दिल ये मानता नहीं मैं इसको क्या कहूँ
— भरत मल्होत्रा