ग़ज़ल : परदेस के मेले में
रहते हो पास में तुम, परदेस के मेले में
होते न हो कभी गुम, परदेस के मेले में
रोली, न कहीं कुमकुम, परदेस के मेले में
सोये हुए हैं अंजुम, परदेस के मेले में
परदेस में मिलती है मुस्कान भी मुश्किल से
याद आये वो तबस्सुम, परदेस के मेले में
उल्फ़त के जो तराने तुमने मुझे सुनाये
वो है कहाँ तरन्नुम, परदेस के मेले में
रंगीन ये फ़िज़ायें, बेजान सी लगती हैं
ये ‘भान’ भी है गुमसुम, परदेस के मेले में
— उदयभान पाण्डेय ‘भान’