गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : परदेस के मेले में

रहते  हो  पास में  तुम, परदेस के  मेले में
होते  न  हो  कभी गुम, परदेस के  मेले में

रोली, न  कहीं  कुमकुम, परदेस के मेले में
सोये   हुए   हैं   अंजुम, परदेस  के  मेले में

परदेस में मिलती है मुस्कान भी मुश्किल से
याद  आये  वो  तबस्सुम, परदेस के  मेले में

उल्फ़त  के जो  तराने  तुमने  मुझे  सुनाये
वो  है   कहाँ   तरन्नुम, परदेस  के  मेले  में

रंगीन  ये  फ़िज़ायें, बेजान  सी  लगती  हैं
ये ‘भान’ भी  है गुमसुम, परदेस के मेले में

उदयभान पाण्डेय ‘भान’ 

उदय भान पाण्डेय

मुख्य अभियंता (से.नि.) उप्र पावर का० मूल निवासी: जनपद-आज़मगढ़ ,उ०प्र० संप्रति: विरामखण्ड, गोमतीनगर में प्रवास शिक्षा: बी.एस.सी.(इंजि.),१९७०, बीएचयू अभिरुचि:संगीत, गीत-ग़ज़ल लेखन, अनेक साहित्यिक, सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव