इस तरह हम आजमाए जा रहे हैं…
इस तरह हम आजमाए जा रहे हैं
हर क़दम काँटे बिछाए जा रहे हैं
क्या ग़जब है तीरगी का साथ लेकर
रोशनी के गीत गाए जा रहे हैं
कर्ज है जिनका वतन पर देखिये तो
नाम अब उनके भुलाए जा रहे है
कर रहे हैं भक्त ऐसे कारनामे
क़ातिलों के बुत बनाए जा रहे हैं
जो उगलते हैं गरल दिन रात मुख से
ताज उनके सर सजाए जा रहे हैं
आपसी विश्वास पर सदभावना पर
मजहबी नश्तर चलाए जा रहे हैं
धर्म के बैनर लगा कर, राजनैतिक
पाठ लोगों को पढ़ाए जा रहे हैं
हैं अदब के कद्रदां बाकी अभी कुछ
मंच पर जो हम बुलाए जा रहे हैं
गैर पर तुहमत मढ़ें क्या, गर्दिशों मे
दूर जब अपने ही साए जा रहे हैं
सतीश बंसल
२३.०८.२०१८