गीतिका/ग़ज़ल

इस तरह हम आजमाए जा रहे हैं…

इस तरह हम आजमाए जा रहे हैं
हर क़दम काँटे बिछाए जा रहे हैं

क्या ग़जब है तीरगी का साथ लेकर
रोशनी के गीत गाए जा रहे हैं

कर्ज है जिनका वतन पर देखिये तो
नाम अब उनके भुलाए जा रहे है

कर रहे हैं भक्त ऐसे कारनामे
क़ातिलों के बुत बनाए जा रहे हैं

जो उगलते हैं गरल दिन रात मुख से
ताज उनके सर सजाए जा रहे हैं

आपसी विश्वास पर सदभावना पर
मजहबी नश्तर चलाए जा रहे हैं

धर्म के बैनर लगा कर, राजनैतिक
पाठ लोगों को पढ़ाए जा रहे हैं

हैं अदब के कद्रदां बाकी अभी कुछ
मंच पर जो हम बुलाए जा रहे हैं

गैर पर तुहमत मढ़ें क्या, गर्दिशों मे
दूर जब अपने ही साए जा रहे हैं

सतीश बंसल
२३.०८.२०१८

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.