कविता

कविता की कविता

आओ ना एक बार,
भींच लो मुझे
उठ रही एक
कसक अबूझ – सी
रोम – रोम प्रतीक्षारत
आकर मुक्त करो ना
अपनी नेह से।

आओ ना एक बार,
ढ़क लो मुझे, जैसे
ढ़कता है आसमां
अपनी ही धरा को
बना दो ना एक
नया क्षीतिज ।

आओ ना एक बार,
सांसो की लय से
मिला दो अपनी
सांसों की लय को
प्रीत हमारी नृत्य करे
धड़कनों की अनुतान पर
रोम रोम में समा लो
ना मुझे।

आओ ना एक बार,
सुनाई दे ध्वनि
शिराओं में प्रवाहित
रक्त की, स्वेद की बूंदें
भी हो जाएं अमृत
जकड़ो ना मेरी
देह को।

आओ ना एक बार,
बन जाते हैं पथिक
उस पथ का
जिसकी यात्रा अनंत हो,
कर दो ना निर्भय
विभेदन के भय से।

आओ ना एक बार,
करो ऐसा यज्ञ
जिसमें अनुष्ठान हो
मिलन की
आहुति हो प्रेम की
करो ना हवन
जिसमें मंत्र हों
समर्पण, समर्पण
और अंततः समर्पण।।

हां आओ ना एक बार……. लेखिका कविता सिंह

सौरभ दीक्षित मानस

नाम:- सौरभ दीक्षित पिता:-श्री धर्मपाल दीक्षित माता:-श्रीमती शशी दीक्षित पत्नि:-अंकिता दीक्षित शिक्षा:-बीटेक (सिविल), एमबीए, बीए (हिन्दी, अर्थशास्त्र) पेशा:-प्राइवेट संस्था में कार्यरत स्थान:-भवन सं. 106, जे ब्लाक, गुजैनी कानपुर नगर-208022 (9760253965) [email protected] जीवन का उद्देश्य:-साहित्य एवं समाज हित में कार्य। शौक:-संगीत सुनना, पढ़ना, खाना बनाना, लेखन एवं घूमना लेखन की भाषा:-बुन्देलखण्डी, हिन्दी एवं अंगे्रजी लेखन की विधाएँ:-मुक्तछंद, गीत, गजल, दोहा, लघुकथा, कहानी, संस्मरण, उपन्यास। संपादन:-“सप्तसमिधा“ (साझा काव्य संकलन) छपी हुई रचनाएँ:-विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कविताऐ, लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित। प्रेस में प्रकाशनार्थ एक उपन्यास:-घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम, “काव्यसुगन्ध” काव्य संग्रह,