कविता

खामोश निगाहें

तेरी ये खामोश निगाहें,
जाने क्या-क्या कहती हैं।
इन आंखों की खामोशी में,
 कितनी नदियां बहती हैं।
इन पलों की चिलमन में,
सौ-सौ तस्वीरें सजती हैं।
तेरी खामोश निगाहों में,
तारीफ किसी की पलती हैं।
ये खामोश निगाहें जैसे,
एक इबादत करती हैं।
आहिस्ता से उठकर ऊपर,
शर्म हया से झुकती हैं।
दे पलों की ओट निगाहें,
कितने सपने रचती हैं।
ये कातिल खामोश निगाहें,
 किसी  पर खुद भी मरती हैं।
अमिता शुक्ला

अमिता शुक्ला

जन्म - 6-1-1972 पिता - स्व. श्री सुरेन्द्र कुमार शुक्ल माता - श्रीमती विंदेश्वरी देवी शिक्षा - स्नातक काव्य लेखन शैली - हास्य-व्यंग्य , श्रंगार (गीत, गजल, कविता , मुक्तक, दोहा, छन्द , हाइकू) काव्य सृजन - वर्ष 1985 से मंचीय काव्यपाठ -शैक्षणिक समारोह में रचना प्रकाशन - शब्द माला ( कविता संग्रह ) सम्मान व पुरस्कार - शैक्षणिक व राज्य स्तरीय कहानी सुनाने की प्रतियोगिता में सम्पर्क सूत्र -मो. गढ़ी पुवायाँ , शाहजहाँपुर (उ.प्र.242401 मो. 8004657675