ग़ज़ल : इल्म के उजालों में
उम्र को नापिये न सालों में ,
जांचिए इल्म के उजालों में ।
कोई एक पल में लगे अपना सा ,
कोई अपना न हुआ सालों में ।
मुल्क अपना है एक दरिया सा ,
इसको बाँटो न झील तालों में ।
देखिये आज का चलन कैसा ,
भेड़िये शेर की हैं खालों में ।
प्यार महके है मेरा आंगन में ,
जैसे गजरा सजा हो बालों में ।
सैले गिरियाँ में डूब जाने दो ,
आह का भी असर हो नालों में ।
इश्क रोके से कब रुका है कहीं ,
इसको बाँधोगे कैसे तालों में ।
आपका गम हुआ है दोहरा सा ,
उलझ के रह गई सवालों मे ।
— डा० नीलिमा मिश्रा