गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : इल्म के उजालों में

उम्र को नापिये न  सालों में ,
जांचिए इल्म के उजालों में ।
कोई एक पल में लगे अपना सा ,
कोई अपना न हुआ सालों में ।
मुल्क अपना है एक दरिया सा ,
इसको बाँटो न झील तालों में ।
देखिये आज का चलन कैसा ,
भेड़िये शेर की हैं खालों में ।
प्यार महके है मेरा आंगन में ,
जैसे गजरा सजा हो बालों में ।
सैले गिरियाँ में डूब जाने दो ,
आह का भी असर हो नालों में ।
इश्क रोके से कब रुका है कहीं ,
इसको बाँधोगे कैसे तालों में ।
आपका गम हुआ है दोहरा सा ,
उलझ के रह गई सवालों मे ।
डा० नीलिमा मिश्रा 

डॉ. नीलिमा मिश्रा

जन्म एवं निवास स्थान इलाहाबाद , केन्द्रीय विद्यालय इलाहाबाद में कार्यरत , शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मध्यकालीन भारत विषय से एम० ए० , राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय से पी०एच० डी० । अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में सहभागिता विशेष रूप से १६वां विश्व संस्कृत सम्मेलन बैंकाक २०१५ । विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में लेख गीत गजल कविता नज़्म हाइकु प्रकाशित इसके अलावा ब्लाग लिखना ,गायन में विशेष रुचि