कविता

अतीत के कोने से

“अतीत के कोने से ”

आज फिर दौड़ गया मन
अतीत की सुनहरी राहों में
याद आ गई दिन बचपन के
बीते जो मां की बाहों में ।

दिन भर खेलना धूल-माटी में
और घुमना स्वच्छन्द निडर
आते ही घर के आंगन में
पड़ती प्यार भरी फटकार ।

अभिमान से मुंह फुल जाता
माँ हाथों से दुलार देती
भूख लगी है कुछ खा लो
चुपके से कान में कहती ।

अपार आनन्द से मन उछल पड़ता
छलक जाती खुशी नैनों से
माँ का ह्रदय भी द्रवित होता
लगा लेती झट गले से ।

सुख-दुख से परे था जीवन
चिंताओं से कोसों दूर
ऊंच-नीच का ज्ञान न था
न किसी से कोई डर ।

सब थे अपने न कोई पराया
न किसी से कोई बैर भाव
प्यार के धागे से बंधा था
मेरा छोटा सा वह गांव ।

छूट गई बचपन की गलियां
बिछड़ गये सब अपने
यादों के झरोखे से झांकें
कुछ बिखरे हुए सपने ।

चाहकर भी ममता की छाँव से
आज बहुत ही दूर हूँ
जीवन के इस लाभ-हानी में
व्यस्त हूँ , मज़बूर हूँ ।

ज्योत्स्ना की कलम से

मौलिक रचना

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]