मुस्काएं खुशियां-ही-खुशियां
उगता हुआ सूरज हो, हरियाली हो,
मेरी इच्छा है देश में खुशहाली हो,
हर एक की आंखों में चमकता नूर हो,
हर चेहरे पर खुशियों की लाली हो.
किंतु यह सब कैसे होगा?
महंगाई की मार पड़ी है,
एक तरफ से ध्यान हटे तो,
नई समस्या मुहं बाए खड़ी है.
भ्रष्टाचार ने इतना सताया,
आम जनों का सिर चकराया,
कहां समस्या का हल पाएं,
कोई भी तो समझ न पाया!
स्वाइन फ्लू भी बनी समस्या,
इसने फंदे में जकड़ा है,
कहते हैं सब डर मत इससे,
डर इसका पर बहुत बड़ा है.
समलैंगिकता के सर्पों ने,
अपनी संस्कृति को डस डाला,
जिसका नाम न लेता कोई,
खुले आम पड़ा उससे पाला.
अब कैसे बच पाएं इनसे,
कोई बताए, कोई समझाए,
कैसे जीवित रहे सभ्यता,
कैसे संस्कृति सांस ले पाए?
इच्छा मेरी कोई न रंजित,
खुश हो, बस खुश हो ये दुनिया,
सबके चेहरे खिले-खिले हों,
मुस्काएं खुशियां-ही-खुशियां
प्रेम-ही-प्रेम हो इस दुनिया में,
रहे न कोई भी ग़मगीन,
जीवन में खुशहाली की,
भ्रातृभाव की ललक नवीन.