दिया जलाने हम आये हैं
अपनी धरती की रक्षा को।
आगे बढ़े कदम आये हैं।
दिया जलाने हम आये हैं।
माँ सीता को हरने वाले।
स्वर्ण महल में रहने वाले।
राम प्रभु की प्रत्यंचा से।
दशकंधर वध कर आये हैं।
दिया जलाने हम आये हैं।
दुर्योधन औ कंस सरीखे।
महा पाप करने वालों को।
मधुसूदन औ पार्थ सरीखे।
वध करने वाले लाये हैं।
दिया जलाने ……………
इतिहासों के जयचन्दों को।
कपट, घात करने वालों को।
दंड हमी देते आये हैं।
दिया जलाने ………….
कारगिल हो या हो कुरुक्षेत्र।
खुल जाते शिव के तीन नेत्र।
तांडव नृत्य किये आये हैं।
दिया जलाने……………
भारत माँ की वे सन्तानें।
जो दूध, वस्त्र भी क्या जानें।
उन्हें जगाने हम आये हैं।
दिया जलाने हम आये हैं।।।
— लाल चन्द्र यादव