गीतिका/ग़ज़ल

बहुत बेचैन हैं कलियाँ गुलों का रंग फ़ीका है

बहुत बेचैन हैं कलियाँ गुलों का रंग फ़ीका है
ये मंज़र साफ़ कहता है यकींनन ड़र किसी का है

गुलों पर मिल रही है देखिये तरजीह ख़ारों को
ये कैसा बागबां का बागबानी का तरीका है

किसी को मंदिरों की है किसी को फ़िक्र मस्ज़िद की
मगर दिल में हमारे ग़म सिसकते आदमी का है

बयां करके हक़ीक़त शुहरतें हासिल नही होतीं
कहे जो झूठ अब दरबार में जलवा उसी का है

नया सूरज उगाया रोशनी के गीत भी गाए
मगर सच है यही शाशन अभी भी तीरगी का है

उसे कुर्सी फ़कत कुर्सी फ़कत कुर्सी से है मतलब
सिवा उसके सियासतदान होता कब किसी का है

बहुत बेचैन रहता है नही मिलता अगर हमसे
असर उस पर यक़ीनन ये हमारी शायरी का है

सतीश बंसल
११.०९.२०१८

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.