बारिश
बारिश का मौसम वैसे तो लगता है सबको सुखदाई
पर गरीब के दुख को तो वर्षा रानी भी समझ न पाई
उसकी छत का टपकना
रातों का जागना
टपकते पानी के नीचे
नन्हें हाथों बर्तन रखना
जैसे तैसे रात कटी कुछ आस लिए तब भोर है आई
आस पर पानी फिरा
जब रवि ने न आँख खोली
ना सुनाई दी कहीं से
एक भी पंछी की बोली
उनके द्वारे लग रहा था जैसे कोई प्रलय आई
उनके चारों ओर बस
मचा था तूफानी ह्ल्ला
जल नहीं पाया था पिछले
कई दिनों से घर में चूल्हा
अब तो उनकी आँखों में भी गरज के बरसात आई
— पुष्पा “स्वाती”