पल्लू
आज एक खबर पढ़ी-
”मुंबई के कांजुर मार्ग रेलवे स्टेशन पर जैसे ही यह महिला ट्रेन से नीचे उतरी, उसकी साड़ी का पल्लू ट्रेन के दरवाजे में फंस गया और वह प्लेटफॉर्म और ट्रेन के गैप में गिर पड़ी. एक नेकदिल-साहसी कांस्टेबल ने कूदकर उसकी जान बचाई. मैं उस महिला के बाल-बाल बचने पर मन-ही-मन बहुत खुश थी और उस नेकदिल-साहसी कांस्टेबल के प्रति मेरा मन श्रद्धावनत हो गया. इसी के साथ मुझे स्मृति हो आई लगभग 12 साल पहले के मधु के पल्लू की.
मधु का पल्लू साड़ी का नहीं, स्वेटर का था. मधु इंग्लिश की अध्यापिका थी. बहुत प्यारी और नाम के अनुरूप मधुर स्वभाव वाली. सर्दियों के दिन थे. वह अपनी 4-5 सहकर्मियों के साथ स्कूल से निकलकर डीटीसी की बस में सवार हुई. गंतव्य आने पर उसे भी अपनी सखियों के साथ उतरना था और और फिर घर की बस पकड़नी थी.
घर की बस पकड़ने से पहले उस बस ने ही उसके लंबे स्वेटर के पल्लू को पकड़ लिया. नियमानुसार सभी सखियां आगे के दरवाजे से बस से उतरीं. मधु भी उतर गई, लेकिन बस के किसी नुकीले कोने के मधु के स्वेटर के पल्लू को पकड़ लिया और वह गिर गई. बस चल पड़ी थी. सबके देखते-देखते मधु उसी बस के पीछे के पहिए के नीचे कुचली जा चुकी थी.
थोड़ी देर में खबर हम तक पहुंच गई. उसके स्वेटर के पल्लू ने उससे न जाने किस जन्म का बदला लिया था.
मधु जैसी मधुरिम सखी का मिलना मुश्किल है. सूरत और सीरत का ऐसा अद्भुत समन्वय बहुत कम ही मिलता है. घर-परिवार, स्कूल-समाज मेंबेहद लोकप्रिय मधु बहुत याद आती है.