तुम्हें अगर है जीना
भरपूर जीना,
तो अंहकार को तोड़ दो
कागज को मोड़ दो
नदी में नाव छोड़ दो।
अगर तुम्हें है जीना
लम्बा सुखद जीवन
तो हाथ धन पर मत सेको
दीन हीन के साथ बैठो
दुख दर्द उसका बांटों।
क्या तुम जीना चाहते हो ?
प्रभात की किरण सा जीवन
तो पशु पक्षियों से बतियाओ
पेड़-पौधों संग मुस्कराओ
कभी-कभी खुद से टर्राओ।
हाँ ! तुम सच में जीना चाहते हो
एक सुनहरा सजीव जीवन
तो कुछ आत्म कथाएँ पढ़ो
धरती और आकाश से मिलो
कुछ सुरीले गीतों को सुनो।
लगता है तुम मरना नहीं चाहते तुम निर्भय जीना चाहते हो,
तो रिश्तों को मोती सम पिरो लो
तेरे मेरे की होली जला लो
प्रकाश में प्रेम का बीज रोप दो।
हाँ ! तुम्हें जीवन में अनुरक्ति है
तुम मरना नहीं चाहते
भीड़ में चल कर देखो
कुछ स्वप्न बुनकर देखो
साथी राहगीर का बन कर देखो।
पंख लग चुके हैं
जिजीविषा जाग चुकी है
मंजिल पर डट जाओ
देश हित कुछ कर जाओ
अपनत्व प्रेम बांट जाओ।
अरे, ये क्या ?
तुमने तो सच में
जीत लिया मृत्यु को
बेचारी द्वार पर खड़ी
बिलख रही है
किस्मत को अपनी
कोस रही है,
तुम्हारे पास आने से
डर रही है।
— निशा नंदिनी