फूलों की कविता-18
फूलों की 21 कविताएं से संग्रहीत
18. गुलाब
मैं गुलाब हूं, प्यारा हूं,
सबकी आंख का तारा हूं।
लाल-गुलाबी-नीले-पीले,
ढेरों रंगों वाला हूं॥
कहलाता फूलों का राजा,
फिर भी नहीं इतराता हूं।
कांटों में रहकर भी खिल-खिल,
हंसता और हंसाता हूं॥
कविता शिक्षाप्रद है। सादर धन्यवाद्।
प्रिय मनमोहन भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको कविता शिक्षाप्रद लगी. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
लीला बहन , बहुत सुन्दर रचना है , सही है की गुलाब काँटों में रह कर भी हँसता है लेकिन हम इंसान फूलों में रह कर भी काँटों जैसा वर्ताव करते हैं .
प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. गुलाब काँटों में रह कर भी हँसता है, लेकिन हम इंसान फूलों में रह कर भी काँटों जैसा वर्ताव करते हैं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
कांटों में रहकर भी खिलखिल हंसता हुआ गुलाब का फूल हमें संदेश देता है, कि फूलों का राजा होने पर भी वह नहीं इतराता है और हरदम हंसता-हंसाता है. यही खुशनुमा जीवन का राज है.