कविता

फूलों की कविता-18

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18. गुलाब

 

मैं गुलाब हूं, प्यारा हूं,

सबकी आंख का तारा हूं।

लाल-गुलाबी-नीले-पीले,

ढेरों रंगों वाला हूं॥

कहलाता फूलों का राजा,

फिर भी नहीं इतराता हूं।

कांटों में रहकर भी खिल-खिल,

हंसता और हंसाता हूं॥

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

5 thoughts on “फूलों की कविता-18

  • मनमोहन कुमार आर्य

    कविता शिक्षाप्रद है। सादर धन्यवाद्।

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको कविता शिक्षाप्रद लगी. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन , बहुत सुन्दर रचना है , सही है की गुलाब काँटों में रह कर भी हँसता है लेकिन हम इंसान फूलों में रह कर भी काँटों जैसा वर्ताव करते हैं .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. गुलाब काँटों में रह कर भी हँसता है, लेकिन हम इंसान फूलों में रह कर भी काँटों जैसा वर्ताव करते हैं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    कांटों में रहकर भी खिलखिल हंसता हुआ गुलाब का फूल हमें संदेश देता है, कि फूलों का राजा होने पर भी वह नहीं इतराता है और हरदम हंसता-हंसाता है. यही खुशनुमा जीवन का राज है.

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