कविता….
कविता किसी विधालय,
महाविधालय में सिखाई-पढ़ाई नहीं जाती
जब एक इंसान लेता है जन्म
पैदा होता है तभी एक कवि- मन
जैसे-जैसे बढ़ता है इंसान
कविता भी कोपलित होती है
पल्लवित होती है पुष्पित होती है
हाँ ! पहचानने में लगता है समय
संवारने में देना होता है वक्त
अंतस से झूझना होता है
बड़ी नाजुक होती है कविता
बड़ा बेचैन रहता है कवि मन
चंचल भी होता है
कभी खामोशियों का मंजर-सा रहता है
तब कहीं कुसुमित होती है कविता
सुगन्धित होती है जहां सारा
कहीं प्रेमभाव, कहीं व्यंग, तो कहीं
हास्य बिखेरती है कविता
समाज को झंझोरती कुप्रथाओं पर प्रहार करती
तो कभी किसी को विचलित करती है कविता।।