“नीर पावन बनाओ करो आचमन”
जो हैं कोमल-सरल उनको मेरा नमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
कुछ भी दुर्लभ नहीं आदमी के लिए,
मान-सम्मान है संयमी के लिए,
सींचना नेह से अपना प्यारा चमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
रास्ते में मिलेंगे बहुत पेंचो-खम,
साथ में आओ मिलकर बढ़ायें कदम,
नीर पावन बनाओ करो आचमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
पेड़ जो दर्प में थे अकड़ कर खड़े,
एक झोंके में वो धम्म से गिर पड़े,
लोच वालो का होता नही है दमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
सख्त चट्टान पल में दरकने लगी,
जल की धारा के संग में लुढ़कने लगी,
छोड़ देना पड़ा कंकड़ों को वतन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
घास कोमल है लहरा रही शान से,
सबको देती सलामी बड़े मान से,
आँधी तूफान में भी सलामत है तन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
— डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’