भूखा बचपन
जब भूखा हो बचपन तो फिर
प्रगति की बात कहां भांती है,
देख अस्वस्थ मासूमों को
दुखती मेरी अपनी छाती है।
भूखे प्यासे बच्चे भटकते हैं
अली- गली और सड़कों पर,
तन पर कपड़े नहीं है इनके
रहने को नहीं है कोई घर।
कुपोषण से पीड़ित यह बच्चे
इनके शरीर में नहीं है शक्ति,
शिक्षा से कोसों दूर यह बच्चे
कैसे जगेगी इनमें देश भक्ति।
आंखों की उदासी में इनकी
धुंधला गए हैं सारे सपने,
भूखे पेट, जर्जर शरीर में
सपने होते नहीं है अपने।
लाखों पीड़ित बच्चे देश में
चेहरा देश का कैसा होगा,
वर्तमान इतनी दुखदाई है
भविष्य कैसे सुखद होगा।
तन पर कपड़े नहीं इनके
पेट में इनके नहीं होती रोटी,
रोग में दवा नहीं मिलती
बात नहीं है यह कोई छोटी।
रीढ़ की हड्डी है ये देश की
है भविष्य के ये कर्णधार,
इनकी प्रगति के बिना,देश
की प्रगति का नहीं आधार।
शक्तिशाली नींव के बिना
कैसे खड़ी रहेगी इमारत,
जब यह बच्चे होंगे स्वस्थ
बनेगा तब सशक्त भारत।
थाम लें इन बच्चों के हाथ
आओ मिलकर करें प्रयास,
इन के सपने होंगे साकार
जगा दे इनके मन में आस ।
पाले सपना ये भी ह्रदय में
कर पाए उसे फिर साकार,
निकलकर दुखों के सागर से
जीवन को दे सकें सुंदर आकार।
तभी उन्नत होगा देश का शीष
बढ़ेगा मान इस सम्पूर्ण धरा पर,
करेगा नमन भारत को विश्व
श्रद्धा से वह नत मस्तक होकर।
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।