कविता

भक्त

जप रहा था माला मंदिर में
एक भक्त रात-दिन,
हे राम, हे कृष्ण, हे शिव,
सबका नाम गिन गिन।
आया कोई भिखारी
ऐसे समय मंदिर द्वार,
भूखे को रोटी दे दो
लगाई उसने गुहार।
तीन दिन से भूखा हूं मैं
गया नहीं पेट में अन्न का दाना,
भटकता हूं इधर उधर मैं
रहने का नहीं कोई ठिकाना।
मलीन वस्त्र, जीर्ण काया
था वह अति दुर्बल,
खड़ा ना होते बना उससे
बैठ गया घुटनों के बल।
दूर हो जा मंदिर के द्वार से
कहां भक्त ने चिल्लाकर,
पाप लगेगा मुझ पर
तुझ सा अपवित्र को खिलाकर।
धरा रूप शिव का भिखारी
हो गया नजरों से ओझल,
समझा तब भक्त ने तब
प्रभु ने किया उससे छल।
जिसमें ना दया, मानवता
उसके हृदय में मेरा वास नहीं,
भूखे को जो रोटी दे
करता मैं निवास वहीं!!!!!

पूर्णतः मौलिक – ज्योत्सना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]