गीतिका
आंसू बिकाऊ हैं इश्क के कीमत लगाओ यारों ।
बेच दो इसको या फिर इसको बचाओ यारो।।
तड़प रहा है सदियों से बेघर होकर यहाँ वहाँ ।
है निलामी इसकी बज्म मे तुम भी आओ यारो।।
पहनकर घुंघरू आज की रौशन शाम कर दी है।
जनाजा सजाने से पहले इसको ले जाओ यारो।।
बिखर न जाये ये टूटकर कही महफिल मे रुबरु।
दो जाम इसको इसे तो यहीं पर सुलाओ यारो।।
होश आने से पहले तुम जुदा कर दो इसको।
दूर ले जाकर कहीं और इसको दफनाओ यारों।।
न आये लौटकर फिर कभी मासूम इस शहर मे।
इस कायनात से कही और इसे ले जाओ यारो।।
— प्रीती श्रीवास्तव