कहानी

काॅफी हाऊस

” काॅफी हाऊस ”

कॉफी हाऊस के कॉफी टेबल पर बैठकर दिशा और आर्यन एक दूसरे को कनखियों से देख रहे थे। शायद दोनों एक दूसरे की आंखों को पढ़ने का प्रयास कर रहे थे। पर वे पढ़ नहीं पा रहे थे कि मन में क्या है।और..…फिर पहली मुलाकात में ही एक दूसरे को पूरी तरह जानना कोई आसान बात तो नहीं है।
दोनों ही कॉफी पी चुके थे तो आर्यन ने धीरे से कहा…..”चलो अब चला जाये बहुत समय हो गया है जाकर देखना है कि उधर कंपनी में क्या चल रहा है ।” आर्यन एक कंपनी का मालिक था, उम्र 40 के आसपास। बहुत आकर्षक व्यक्तित्व है उसका।
“जी… अब चलना चाहिए मुझे भी अपना कार्य समाप्त कर बैंक बंद करना है।” दिशा ने जवाब दिया।
दिशा एक कॉरपोरेट बैंक में बैंक मैनेजर थी, उसी बैंक में आर्यन का बिजनेस अकाउंट था इसलिए उसका आना जाना लगा रहता था। अबकी बार तो ब्रांच मैनेजर के निमत्रण पर ही आया था। ग्राहक सम्मेलन में बड़े-बड़े ग्राहकों को निमंत्रण दिया गया था।
घर लौटते हुए दिशा कार में बैठी और सोचने लगी…”क्यों आर्यन ने मुझे कॉफी पर बुलाया? वह शादीशुदा है या नहीं। उम्र तो बहुत है, लगता तो नहीं कि वह अविवाहित है। और अगर वह विवाहित है तो मुझे ऐसी नजर से क्यों देखा रहा था? क्या है उसके मन में?”…. गाड़ी आकर घर के सामने रुकी और ड्राइवर ने कहा “मैडम घर आ गया”, तो उसकी सोच का सिलसिला रुका।
सुबह फिर घर में आर्यन का फोन आया तो दिशा थोड़ी असमंजस की स्थिति में थी। वह सोच रही थी कॉल रिसीव करूं कि नहीं। काॅल कट गया और दोबारा फिर काॅल आया। इस बार दिशा ने फोन उठा कर कहा…”हेलो आप कौन बोल रहे हैं।” वह जानती थी कि आर्यन है फिर भी पूछा।
“क्या आप थोड़ा सा समय दे सकती हैं। थोड़ी देर बातें करना चाहता हूं आप बुरा ना माने तो।”… आर्यन ने बहुत ही शालीनता से पूछा।
दिशा ने थोड़ी देर सोचा फिर कहा….”हां… क्या बात करनी है? थोड़ी देर के बाद मुझे ऑफिस जाना है। जो भी कहना चाहते हैं विलम्ब न करते हुए कह दीजिए।”
“धन्यवाद ! आपके सहयोग के लिए”आर्यन बोल पड़ा।
“आज ऑफिस के बाद क्या आप डिनर के लिए मेरे साथ चल सकती हैं ?” आर्यन ने पूछा।
दिशा को समझ ना आया कि क्या उत्तर दें थोड़ी देर रुक कर कहां…”रात का खाना तो मैं घरवालों के साथ ही खाती हूं। आपके पास समय हो तो शाम को चाय या कॉफी के लिए चल सकती हूं।”…. दिशा का जवाब था।
“जी अच्छा! मैं समय निकाल लूंगा पर आप तैयार रहना। आप मेरे से ज्यादा व्यस्त रहती हैं। मैं ठहरा निठल्ला आदमी।”…. आर्यन ने थोड़ा सा हंसते हुए कहा।
“ऐसी कोई बात नहीं, आप इतनी बड़ी कंपनी के मालिक है। इतना तो मुझे भी पता है क्योंकि आपका अकाउंट है मेरे बैंक में।”…. दिशा ने भी मुस्कुराते हुए शरारत से कहा।
शाम को कॉफी हाऊस में बैठकर, कॉफी की चुस्की लेते हुए आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा…”आप इतना सब कैसे कर लेती हैं? घर संभालना और बैंक को भी आपने बखूबी संभाल रखा है। एक बहुत अच्छी मैनेजर के नाम से जानी जाती है।”
“इसमें क्या बड़ी बात है? आप लोग लड़कियों को कमजोर क्यों समझते हैं? लड़कियां भी जिम्मेदारी निभाने की माद्दा रखती हैं।”…. दिशा ने हंसते हुए कहा।
“तभी तो मैं आपके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हूं। आज के जमाने की लड़कियों को सशक्त तो होना ही चाहिए। पहले जमाने की बात कुछ और थी।”… आर्यन ने लड़कियों की अनुशंसा की।
“लड़कियों के बारे में आप की सोच को देख कर अच्छा लगा।”…. दिशा ने आर्यन
से आंखें मिलाते हुए कहा।
“कम से कम मेरे बारे में तो ऐसी सोच मत रखिए। मैं उन लोगों में से नहीं हूं।”… आर्यन दिशा की ओर देख कर मुस्कुरा रहा था।
आज दोनों एक दूसरे से काफी खुले हुए थे। दोनों की ही झिझक कम हो गई थी। ऐसा लग रहा था कि दोनों एक दूसरे को वर्षों से जानते हैं। दोनों अच्छे मित्र बन गए थे।
“मेरे बारे में तो बहुत बातें हो चुकी है, अब आप अपने बारे में भी कुछ बताइए। आप पुरुष लोग कैसे तालमेल बैठाते हैं अपने कार्य एवं घर परिवार के बीच में?”
दिशा ने थोड़ी चुटकी लेते हुए कहा।
“घर परिवार में कौन है, मैं और मेरा घर और मेरी कंपनी, बस…। इसमें क्या तालमेल बैठाना। जब चाहे घर चले जाओ, कोई पूछने वाला नहीं, बोलने वाला नहीं। अपनी मर्जी का स्वयं ही मालिक हूं।”…. आर्यन थोड़ा शरारत भरी निगाहों से दिशा की ओर देखते हुए कहा।
“क्यों…. आपकी पत्नी और बच्चे क्या मायके गए हुए हैं?”…. दिशा ने आश्चर्य भरी निगाहों से देखते हुए कहा।
“पत्नी…. बच्चे….. शादी के बाद ही होते हैं ना। जब शादी ही नहीं हुई तो पत्नी, बच्चे कहां से आएंगे?”… आर्यन ने शरारत से कहा।
“ओह….!आय एम साॅरी…! मैंने शायद गलत बात कह दी, मुझे पता नहीं था कि आप शादीशुदा नहीं हैं।”…. दिशा ने थोड़ा सा दुख का नाटक करते हुए कहा।
“नो प्रॉब्लम, इट्स ऑल राइट , यह होता रहता है। उम्र थोड़ी ज्यादा हो गई है ना, समझ लो बुढ़ापा आ ही गया”….. हा.. हा… हा.. आर्यन जोर से हंसने लगा।
दिशा भी हंस पड़ी। उसके मन में जिज्ञासा होने लगी तो उसने पूछ ही लिया….”क्यों नहीं की शादी अब तक, और बुढ़ापा तो नहीं आया। कितनी उम्र है आपकी जो अभी से बुढ़ापा ओढ़ रखा है।”
“ज्यादा तो नहीं, हां 41 का हो गया हूं। आप चाहे तो जवान भी समझ सकते हैं। आपकी मर्जी है। और शादी इसलिए नहीं की क्योंकि कभी कोई मनपसंद आप जैसी लड़की मिली ही नहीं। एक मिली भी थी तो वैचारिक तालमेल ना होने के कारण बहुत लंबा नहीं चल पाया। उसने किसी डॉक्टर से शादी कर ली और अब अपने घर गृहस्ती में व्यस्त हैं, खुश हैं। मां पिताजी जब थे तब बहुत जोर लगाते रहे कि शादी कर लो… पर ना जाने क्यों दिल ने चाहा ही नहीं। और अब जब वे दोनों ही नहीं रहे तो कहने वाला ही कोई नहीं है।”… आर्यन एक सांस में सब कुछ कह गया।
दिशा चुपचाप थी और आर्यन की बातें ध्यान से सुन रही थी। क्या कहें उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसका मन ऑफिस की ओर भाग रहा था तो उसने कहा…”बहुत देर हो गई है, अब चलना चाहिए हमें। मुझे ऑफिस का काम पूरा करके घर भी जाना है।”…. और दोनों कॉफी हाउस से बाहर आ गए।
कार में बैठे बैठे दिशा सोचने लगी …. आर्यन अविवाहित है और इसलिए शायद मेरी ओर उसने दोस्ती का हाथ बढ़ाया। क्या इस दोस्ती को आगे बढ़ाना चाहिए या यहीं पर रोक देना चाहिए। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे क्या नहीं करे। कुछ ही दिनों में आर्यन उसे अच्छा लगने लगा। आर्यन से मिलकर उसे खुशी तो होती है पर मन में एक डर भी है कहीं कुछ गलत ना हो जाए।”
“मैडम घर आ गया।”…. ड्राइवर ने जब कहा तब दिशा सपनों की दुनिया से बाहर आ गई।
इस तरह दोनों कॉफी हाउस में मिलते और कुछ बातें अपनी करते ,कुछ देश दुनिया की बातें करते, कुछ बिजनेस की बातें करते। दोनों को एक दूसरे का साथ अब भाने लगा था।
आज ऑफिस में फिर आर्यन का फोन आया…..”दिशा क्या शाम को थोड़ा सा समय दे सकती हो। कॉफी हाउस में बैठकर थोड़ी देर बातें करेंगे। आज मन थोड़ा उदास है शायद मन हल्का हो जाए।”
“आज नहीं आर्यन, आज मुझे जल्दी घर जाना पड़ेगा”… दिशा ने कहा।
“क्यों .…. ऐसी क्या बात है ,कुछ पार्टी वार्टी है क्या तो फिर मैं भी आ जाता हूं”…. आर्यन ने हंसते हुए चुटकी ली।
“नहीं… कोई पार्टी नहीं है, मेरी बेटी की तबीयत खराब है।”…. सुनते ही उधर खामोशी छा गई।
“हेलो…. हेलो….” कोई जवाब न मिलने पर दिशा ने फोन रख दिया।
घर पहुंचकर दिशा अपनी बेटी तान्या की सेवा में लग गई। उसे रात का खाना खिलाकर और दवा देकर सुला दिया। स्वयं भी खाना खा कर सोने चली गई। बहुत थक गई थी आज वह। पर.…नींद आंखों से कोसों दूर थी। वह आर्यन के बारे में ही सोच रही थी। बेटी के बारे में बताते ही वह चुप हो गया था। क्या समाज में सभी पुरुष एक जैसे होते हैं? सब के विचार एक जैसे होते हैं? इसी अधेड़ बुन में कब उसकी आंख लग गई पता ही नहीं चला।
दिशा के मन में कोई बात चुभ रही थी। इसलिए उससे रहा ना गया और उसने स्वयं ही आर्यन को ऑफिस जाने से पहले फोन लगा दिया.….”क्या आज आप मुझसे कॉफी हाउस में मिल सकते हैं। बहुत आवश्यक बात करनी है।”
“हां…. आ जाऊंगा पर कितने बजे।”…. आर्यन ने पूछा।
“5:00 बजे….. कॉफी के समय पर।….. दिशा ने जवाब दिया।
दोनों कॉफी हाऊस में बैठे थे और दोनों ही चुप थे। यह चुप्पी दिशा को खल रही थी। फिर उसने ही पहल किया और आर्यन से पूछा….”आर्यन…. मेरी बेटी के बारे में जानकर तुमने कुछ पूछा ही नहीं और एकदम चुप हो गए। क्या बात है? तुम्हें मेरे बारे में कुछ जानने की इच्छा नहीं है क्या?”
“है पर…. साहस नहीं जुटा पाया। सच शायद में सह ना सकूं इसलिए चुप हो गया था। आज बताओ क्या सच है। सब कुछ जानना चाहता हूं।”आर्यन का उत्तर था।
दिशा ने कहना शुरू किया…..”मेरे पापा आर्मी में मेजर थे अब रिटायर हो चुके हैं। शहर से बाहर एक फार्महाउस लेकर वहां पर मम्मी और पापा दोनों रहते हैं। फलों का बगीचा और खेत-खलिहानों के बीच रहना उनको पसंद है। शहर उनको भाता नहीं है। सेवानिवृत्त होने के पश्चात उन दोनों ने शांतिपूर्ण वातावरण में रहना पसंद किया। हमारा आना जाना लगा रहता है। एक रविवार को मैं जाती हूं तो दूसरे रविवार पापा मम्मी आ जाते हैं मुझसे मिलने। मेरा भाई डॉक्टर है जो कि लंदन में रहता है। पापा मम्मी ने मेरी शादी के लिए बहुत से लड़के देखें पर किसी से वैचारिक तालमेल नहीं हो पाया।
सारा दिन ऑफिस के काम में बीत जाता, पर.…शाम को घर पहुंचने के बाद बहुत सुनापन और अकेलापन लगने लगा था। पापा से मैंने इस विषय में बात की तो उन्होंने सलाह दी कि बेटा एक बच्ची को गोद ले लो और उसकी देखभाल के लिए घर में एक आया रख लो। शाम को जब घर लौट कर आओगी तो उसका चेहरा देखकर सारी थकान मिट जाएगी। मेरे पापा बहुत आधुनिक विचार के हैं। फिर क्या, बस.…तान्या के साथ समय कैसे हवा की भांति निकल गया कुछ पता ही नहीं चला। तान्या जब 3 साल की हुई तो मेरे जीवन में एक लड़का आया था, जो मेरा सहकर्मी था। हम एक दूसरे को पसंद करते थे। पर… जब उसे एक दिन पता चला कि मैंने एक लड़की को गोद ली है तो मुझसे दूरी बनाकर चलने लगा। फिर उसने किसी दूसरी लड़की से शादी कर ली। और मैं भी ट्रांसफर लेकर इस ब्रांच में आ गई। दिशा ने थोड़ी सी सांस ली फिर कहने लगी…..
“क्यों हमारे समाज में लड़के सक्षम और सावलंबी लड़कियों को पसंद नहीं करते? क्यों उन्हें एक छुई मुई और दबी हुई लड़की चाहिए। लड़कियों के प्रति इनकी मानसिकता कब बदलेगी। कब बदलेगा हमारा समाज?”…. दिशा बिना रुके ही धाराप्रवाह बोलती गई।
“सब एक जैसे नहीं होते दिशा, सबको एक ही पलड़े में तोलना सही नहीं है।”…. आर्यन ने दिशा को सांत्वना देने का प्रयास किया।
“पता नहीं…. मुझे तो अभी तक ऐसा कोई नहीं मिला।”… एक लंबी सांस छोड़ते हुए दिशा ने जवाब दिया।
“और अगर कोई मिल जाए तो क्या…. शादी करने का इरादा है तुम्हारा?….. आर्यन ने आज मौका देख कर पूछने की हिम्मत कर ही ली।
“अगर ऐसा कोई मिल जाए जो मुझे मेरी बेटी के साथ स्वीकार करें। पर….ऐसा संभव होता दिखता नहीं है मुझे।”… दिशा ने कहते हुए जरा हंसने की कोशिश की।
वातावरण थोड़ा भारी हो रहा था देख कर आर्यन ने उसे हल्का बनाने का प्रयास करते हुए कहा….”तुम्हारे सामने ही तो बैठा है एक। क्या वह तुम्हें लड़का नहीं लग रहा है? कोई साठ साल का बुड्ढा लग रहा है”… आर्यन ने हंसते हुए कहा।
“मजाक मत करो आर्यन…. मैंने कभी तुम्हें ऐसा कहा है क्या? तुम स्वयं ही अपना मजाक उड़ाते रहते हो। फिर तो मैं भी बुड्ढी हो गई।”… दिशा ने थोड़ा सा चिढ़ने का नाटक किया।
“कितनी उम्र है तुम्हारी।”… आर्यन ने पूछ लिया।
“39 की हो गई हूं, बच्ची नहीं हूं”।… दिशा ने प्यार से आर्यन की ओर देखा।
अचानक आर्यन ने दिशा का हाथ अपने हाथों में लेकर धीरे से कहा…”मुझसे शादी करोगी दिशा?”
आज दिशा ने हाथ छुड़ाने का जरा भी प्रयास नहीं किया। आर्यन का स्पर्श उसे भा रहा था। कुछ कहना चाहा पर जुबां ने साथ नहीं दिया। थोड़ी देर खामोशी छाई रही। दोनों एक दूसरे को देखते रहे। आर्यन दिशा को बड़ी आशा भरी निगाहों से देख रहा था। आर्यन की आंखों का जादू दिशा के हृदय को छू गया था। उसकी आंखें नम सी हो गई थी। अपनी आंखों की नमी छुपाने के लिए उसने आंखें झुका ली और कहा….”हां……………!!!!”

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

 

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com

One thought on “काॅफी हाऊस

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कहानी !

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