कविता

पल

“पल”

ये जो पल,यही दो पल
जी भर के जी ले ज़रा,
मस्ती घुली है इस पल में
ये पल है जादू भरा ।

बस इसी दो पल में
समेट ले सारी खुशियाँ,
मिलेगी न दोबारा
जीवन की ये रंगीनियाँ ।

हाथों में है आज ये पल
कल की किसे खबर
न सोच कल होगा क्या
बस आज पे रख नज़र ।

कर ले आज कोई काम बड़ा
तो कल होगा सुहाना
किस सोच में डूबा है तू
सोचकर न ये पल गंवाना ।

मस्ती भरा है ये आलम
मौसम भी है सुहाना
जोशे-ए-जुनूं की नहीं कमी
तुझ में वो पागल दिवाना ।

समझ ले वक्त का तक़ाज़ा
वक्त क्या चाहता है
वक्त रहते कर जतन
बाद में क्यों पछताता है ।

स्वरचित-ज्योत्स्ना पाॅल ।
मौलिक रचना

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]