पल
“पल”
ये जो पल,यही दो पल
जी भर के जी ले ज़रा,
मस्ती घुली है इस पल में
ये पल है जादू भरा ।
बस इसी दो पल में
समेट ले सारी खुशियाँ,
मिलेगी न दोबारा
जीवन की ये रंगीनियाँ ।
हाथों में है आज ये पल
कल की किसे खबर
न सोच कल होगा क्या
बस आज पे रख नज़र ।
कर ले आज कोई काम बड़ा
तो कल होगा सुहाना
किस सोच में डूबा है तू
सोचकर न ये पल गंवाना ।
मस्ती भरा है ये आलम
मौसम भी है सुहाना
जोशे-ए-जुनूं की नहीं कमी
तुझ में वो पागल दिवाना ।
समझ ले वक्त का तक़ाज़ा
वक्त क्या चाहता है
वक्त रहते कर जतन
बाद में क्यों पछताता है ।
स्वरचित-ज्योत्स्ना पाॅल ।
मौलिक रचना