‘मीटू’ ‘मीटू’
ना मेरी खता थी न तेरी खता थी,
कुछ मेरी तमन्ना थी
कुछ तेरी ज़रुरत थी,
ना तुमने कुछ कहा
ना मैंने कुछ कहा
बस आँखों आँखों की गुगतगूं थी ,
ना तुम मुस्कुराये ना हम मुस्कुराये
ना तुम रोये ना हम रोये
यह बात छिपाने में दोनों की मंज़ूरी थी,
अब तुम तुम ना रहे हम हम ना रहे
तुम किसी के हो गए हम किसी के हो गए,
फिर इस ‘मीटू’ ‘मीटू’ की ज़रुरत क्या थी,
हम बदनाम हुए तो क्या तुम बच जाओगे
कभी सोचो , उस हालात में ‘हकीकत’ क्या थी,
— जय प्रकाश भाटिया