सामाजिक

बढ़ते वृद्धाश्रम संस्कृति के लिए खतरे का संकेत

वृद्धाश्रम उस निवास स्थान का नाम है जहाँ पर असहाय अशक्त, निर्बल अथवा परिवार से विरक्त हो चुके वृद्धों को आश्रय तो दिया ही जाता है, साथ ही उनकी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सामूहिक स्तर पर सहायता की जाती है। जो शायद व्यक्तिगत स्तर या पारिवारिक स्तर पर संभव नहीं हो पाती है।
आधुनिक बच्चों की व्यवस्था व संस्कार रहित जीवन को देखते हुए। आजकल देखा जाये तो हर दूसरे शहर में एक वृद्धाश्रम होता है। जिस तरह बाल आश्रम जरुरत मंद बच्चों को पनाह देता है वैसे ही वृद्धाश्रम घर से निकले गए असहाय वृद्ध जनों को पनाह देता है। इन बुज़ुर्गो की हालात के ज़िम्मेदार और कोई नही अपितु उनके बच्चे ही होते हैं। जिन्हें प्यार से हर परिस्तिथि में पाला होता है वे ही माँ बाप को वृद्धाश्रम का रास्ता दिखा देते हैं ये परिणाम है भारतीय समाज का पश्चिमी सभ्यता की ओर बढ़ने का।हम आधुनिकता के नाम पर अपनी संस्कृति और संस्कारों को इतना पीछे छोड़ रहे हैं कि इन्सानियत कहीं न कहीं खोती जा रही है।माँ बाप हमें बिना किसी स्वार्थ के पालते हैं और हमसे केवल एक ही आशा रखते हैं कि हम बड़े होकर उनकी लाठी बनेंगे और उनको बुढ़ापे में सहारा देंगे। लेकिन आजकल कुछ लोगों की स्वार्थता तो देखिये एक बार सारी संपत्ति मिल जाने पर अपने माँ बाप को ही त्याग देते हैं उन्हें बोझ समझने लगते हैं और घर से बेदखल कर देते हैं जिनको समाज या सम्मान का डर होता है जो लोग ऐसा नही कर पाते वे अपने माँ बाप से अलग रहने लगते हैं और उन्हें अकेला छोड़ देते हैं आजकल फादर्स डे और मदर्स डे का बहुत चलन है। लेकिन लोग इन दोनों दिवसों को 75% लोग केवल सोशल मीडिया पर ही मानते हैं और असल ज़िन्दगी में माँ बाप को कोई सम्मान नहीं देते हैं।
बहुत किस्मत वाले होते हैं वह मां-बाप जिनके बुढ़ापे में औलादें साथ रहती हैं। जिस औलाद का पेट भरने के लिए मां-बाप भूखे रहते हैं और पेट काटकर उनकी फरमाइश पूरी करते हैं, वही औलाद जब बड़े होने पर साथ रखने से मना कर देती है तो दिल क्या पूरी जिंदगी ही टूट जाती है।
जिस वक्त अपनी औलाद की सबसे ज्यादा जरूरत होती है उसी समय ऐसा तिस्कार नरक से बदतर होता है। लेकिनजो औलाद मां-बाप की कद्र नहीं करती। उसका होना या नहीं होना बराबर है। अपनी संतानों से अलग रह रहे बुजुर्ग कभी अच्छा बोलते हैं। तो कभी गुस्से में भलाबुरा भी कहते हैं। कुल मिलाकर जो बुजुर्ग औलादों से अलग अकेले या वृद्धाश्रम में रह रहे हैं उनको प्यार की बड़ी दरकार है और उनकी आंखों में अपनों का इंतजार ही दिखाई देता है।आज रिश्तों की अहमियत कुछ नहीं है बस पैसा है सब कुछ है। रिश्तों की बुनियाद और अहमियत आज पैसा तय करता है। बच्चे जब उड़ना सीख जाते हैं तो मां-बाप को भुला देते हैं जिन्होंने बच्चों को उड़ना सिखाया। इंसान को जिंदगी अकेले ही बितानी होती है।
बूढ़ी पथराई आंखों में जहां एक ओर अपनी औलाद के लिए आज भी प्यार का सागर मौजूद है वहीं दूसरी ओर अकेलेपन का अहसास और आश्रम की चार दीवारी में पसरा सन्नाटा भी देखा जा सकता है।
इंसान चाहे जवान हो या बुजुर्ग, उसको जिंदगी से कभी हार नहीं माननी चाहिए, उसको अपना लक्ष्य हर हाल में हासिल करना चाहिए। बच्चे स्वार्थ निकलने के बाद मां-बाप को घर से बाहर का रास्ता दिखा देते हैं, लेकिन वह भूल जाते हैं कभी न कभी वह भी बूढ़े जरूर होंगे। जो आश्रम बुजुर्गो के लिए बनाया गया है यहां पर सभी एक दूसरे के दुख को बांटकर कम कर लेते हैं।
एक बुजुर्ग ने बताया की परिवार में बेटे से लेकर पोती-पोती तक हैं।जब बेटे की शादी हुई तो उसका ध्यान अपनी गृहस्थी की ओर ज्यादा होने लगा। इसलिए मैं समझ गया कि मुझे अलग रहना चाहिए। क्योंकि इंसान अपनी पूरी जिंदगी दूसरों के सहारे नहीं बिता सकता, इसलिए मैंने वृद्ध आश्रम में रहने का फैसला लिया। यहां सभी बुजुर्ग एक दूसरे के सुख-दुख बांटकर खुश रहते हैं। जीवन के अकेले पन ने मुझे संगीतकार बना दिया।लेकिन कई बार बिना घर वालों के अकेलापन महसूस भी होता है।लेकिन उम्र ढलने के बाद एक बुजुर्ग दरकिनार भी किया सकता है। लोग ऐसा मानते हैं। इंसान को शुरू में बुढ़ापे की योजना बना लेनी चाहिए। ताकि वह कभी किसी का मोहताज न बन सके।
वृद्धाश्रम आज की आवश्यकता नहीं है परन्तु भविष्य की आवश्यकता अवश्य है, जो मानव सभ्यता को उसकी जीवन संध्या को कलंकित होने से बचा सकेगी।
निशा नंदिनी 

*डॉ. निशा नंदिनी भारतीय

13 सितंबर 1962 को रामपुर उत्तर प्रदेश जन्मी,डॉ.निशा गुप्ता (साहित्यिक नाम डॉ.निशा नंदिनी भारतीय)वरिष्ठ साहित्यकार हैं। माता-पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता व राधा देवी गुप्ता। पति श्री लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता। बेटा रोचक गुप्ता और जुड़वा बेटियां रुमिता गुप्ता, रुहिता गुप्ता हैं। आपने हिन्दी,सामाजशास्त्र,दर्शन शास्त्र तीन विषयों में स्नाकोत्तर तथा बी.एड के उपरांत संत कबीर पर शोधकार्य किया। आप 38 वर्षों से तिनसुकिया असम में समाज सेवा में कार्यरत हैं। असमिया भाषा के उत्तरोत्तर विकास के साथ-साथ आपने हिन्दी को भी प्रतिष्ठित किया। असमिया संस्कृति और असमिया भाषा से आपका गहरा लगाव है, वैसे तो आप लगभग पांच दर्जन पुस्तकों की प्रणेता हैं...लेकिन असम की संस्कृति पर लिखी दो पुस्तकें उन्हें बहुत प्रिय है। "भारत का गौरव असम" और "असम की गौरवमयी संस्कृति" 15 वर्ष की आयु से लेखन कार्य में लगी हैं। काव्य संग्रह,निबंध संग्रह,कहानी संग्रह, जीवनी संग्रह,बाल साहित्य,यात्रा वृत्तांत,उपन्यास आदि सभी विधाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मुक्त-हृदय (बाल काव्य संग्रह) नया आकाश (लघुकथा संग्रह) दो पुस्तकों का संपादन भी किया है। लेखन के साथ-साथ नाटक मंचन, आलेखन कला, चित्रकला तथा हस्तशिल्प आदि में भी आपकी रुचि है। 30 वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों व कॉलेज में अध्यापन कार्य किया है। वर्तमान में सलाहकार व काउंसलर है। देश-विदेश की लगभग छह दर्जन से अधिक प्रसिद्ध पत्र- पत्रिकाओं में लेख,कहानियाँ, कविताएं व निबंध आदि प्रकाशित हो चुके हैं। रामपुर उत्तर प्रदेश, डिब्रूगढ़ असम व दिल्ली आकाशवाणी से परिचर्चा कविता पाठ व वार्तालाप नाटक आदि का प्रसारण हो चुका है। दिल्ली दूरदर्शन से साहित्यिक साक्षात्कार।आप 13 देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं। संत गाडगे बाबा अमरावती विश्व विद्यालय के(प्रथम वर्ष) में अनिवार्य हिन्दी के लिए स्वीकृत पाठ्य पुस्तक "गुंजन" में "प्रयत्न" नामक कविता संकलित की गई है। "शिशु गीत" पुस्तक का तिनसुकिया, असम के विभिन्न विद्यालयों में पठन-पाठन हो रहा है। बाल उपन्यास-"जादूगरनी हलकारा" का असमिया में अनुवाद हो चुका है। "स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्व विद्यालय नांदेड़" में (बी.कॉम, बी.ए,बी.एस.सी (द्वितीय वर्ष) स्वीकृत पुस्तक "गद्य तरंग" में "वीरांगना कनकलता बरुआ" का जीवनी कृत लेख संकलित किया गया है। अपने 2020 में सबसे अधिक 860 सामाजिक कविताएं लिखने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। जिसके लिए प्रकृति फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया। 2021 में पॉलीथिन से गमले बनाकर पौधे लगाने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। 2022 सबसे लम्बी कविता "देखो सूरज खड़ा हुआ" इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। वर्तमान में आप "इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल न्यास" की मार्ग दर्शक, "शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास" की कार्यकर्ता, विवेकानंद केंद्र कन्या कुमारी की कार्यकर्ता, अहिंसा यात्रा की सूत्रधार, हार्ट केयर सोसायटी की सदस्य, नमो मंत्र फाउंडेशन की असम प्रदेश की कनवेनर, रामायण रिसर्च काउंसिल की राष्ट्रीय संयोजक हैं। आपको "मानव संसाधन मंत्रालय" की ओर से "माननीय शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी जी" द्वारा शिक्षण के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। विक्रमशिला विश्व विद्यालय द्वारा "विद्या वाचस्पति" की उपाधि से सम्मानित किया गया। वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव इंडोनेशिया व मलेशिया में छत्तीसगढ़ द्वारा- साहित्य वैभव सम्मान, थाईलैंड के क्राबी महोत्सव में साहित्य वैभव सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन असम द्वारा रजत जयंती के अवसर पर साहित्यकार सम्मान,भारत सरकार आकाशवाणी सर्वभाषा कवि सम्मेलन में मध्य प्रदेश द्वारा साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुआ तथा वल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज किया गया। बाल्यकाल से ही आपकी साहित्य में विशेष रुचि रही है...उसी के परिणाम स्वरूप आज देश विदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें पढ़ा जा सकता है...इसके साथ ही देश विदेश के लगभग पांच दर्जन सम्मानों से सम्मानित हैं। आपके जीवन का उद्देश्य सकारात्मक सोच द्वारा सच्चे हृदय से अपने देश की सेवा करना और कफन के रूप में तिरंगा प्राप्त करना है। वर्तमान पता/ स्थाई पता-------- निशा नंदिनी भारतीय आर.के.विला बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी, गली- ज्ञानपीठ स्कूल तिनसुकिया, असम 786192 [email protected]